प्यार और जंग में सब जायज: शरद पवार का जिक्र कर बोले नितिन गडकरी, राजनीतिक उलटफेर पर साधा निशाना

वर्धा के अरवी में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर लग रहे पार्टी तोड़ने के आरोपों पर अपनी प्रतिक्रिया दी। इसी दौरान उन्होंने शरद पवार का जिक्र करते हुए कहा, “प्यार और जंग में सब जायज है।” गडकरी का यह बयान राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है।

Nitin Gadkari

शरद पवार का जिक्र क्यों किया गडकरी ने?

हाल ही में एक इंटरव्यू में गडकरी ने कहा कि शरद पवार ने भी अपने समय में ऐसे ही कुछ राजनीतिक फैसले लिए थे। उन्होंने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि पवार जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने कई पार्टियों को तोड़ा। शिवसेना में भी उन्होंने विभाजन कर छगन भुजबल जैसे नेताओं को बाहर लाया था। गडकरी ने कहा, “अब यह सही है या गलत, यह अलग बात है। लेकिन एक कहावत है कि प्यार और जंग में सब जायज है।”

बीजेपी को बताया कार्यकर्ताओं की पार्टी

अरवी में सभा के दौरान गडकरी ने बीजेपी के संगठनात्मक ढांचे की भी बात की। उन्होंने कहा कि, “बीजेपी न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी है और न ही मेरी। यह उन समर्पित कार्यकर्ताओं की पार्टी है जिन्होंने अपना जीवन इसके लिए समर्पित किया है।” गडकरी ने अपने शुरुआती राजनीतिक दौर को याद करते हुए कहा कि उन्होंने विदर्भ क्षेत्र के वर्धा जिले में कठिन परिस्थितियों में पार्टी के लिए काम किया है।

कांग्रेस पर साधा निशाना

गडकरी ने अपने भाषण में कांग्रेस पर भी जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “भारत के 75 साल के इतिहास में कांग्रेस ने कभी ग्रामीण विकास को प्राथमिकता नहीं दी। गांवों में सड़कें, पीने का पानी और अन्य आवश्यक सुविधाओं का हमेशा अभाव रहा है।” उन्होंने यह भी कहा कि अगर कांग्रेस ने ग्रामीण भारत पर ध्यान दिया होता, तो आज किसानों की आत्महत्या और गांवों में गरीबी जैसी समस्याएं नहीं होतीं।

महाराष्ट्र की राजनीति में उथल-पुथल

गडकरी के इस बयान के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में फिर हलचल मच गई है। 2022 में शिवसेना में विभाजन हुआ, और 2023 में एनसीपी भी बंट गई। लोकसभा चुनावों में महाविकास अघाड़ी को महाराष्ट्र की 48 में से 30 सीटें मिलीं, जबकि महायुति को 17 सीटों पर संतोष करना पड़ा।

गडकरी के इस बयान ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। राजनीति में नैतिकता की परिभाषाएं लगातार बदलती दिख रही हैं, और आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर किस तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।

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