बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि 18 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ सहमति से भी शारीरिक संबंध बलात्कार की श्रेणी में आता है। अदालत ने इस मामले में दोषी पति को 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई।
यह मामला 2019 का है, जहां पीड़िता, जो वारधा जिले की रहने वाली नाबालिग लड़की थी, आरोपी के शोषण का शिकार हुई। अदालत ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत यह निर्णय दिया कि वैवाहिक बलात्कार के अपवाद नाबालिगों पर लागू नहीं होते।
क्या है मामला?
यह केस 2019 में वारधा जिले से सामने आया था। पीड़िता, जो उस समय नाबालिग थी, आरोपी के संपर्क में थी। शुरुआत में उसने आरोपी के नजदीक आने के प्रयासों को नकार दिया। लेकिन आर्थिक तंगी के चलते जब पीड़िता काम की तलाश में दूसरे शहर चली गई, तो आरोपी ने उसका पीछा किया।
कैसे बढ़ा मामला?
- आरोपी ने शादी का झूठा वादा करके पीड़िता को अपने जाल में फंसा लिया।
- आरोपी ने एक अनौपचारिक शादी की रस्म किराए के कमरे में आयोजित की, जिसे बाद में पीड़िता ने कानूनी रूप से अमान्य बताया।
- इस रिश्ते के कारण पीड़िता गर्भवती हो गई।
- आरोपी ने गर्भपात कराने का दबाव बनाया और बच्चे की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया।
- आरोपी ने पीड़िता पर बेवफाई का भी आरोप लगाया।
आखिरकार, पीड़िता ने न्याय की गुहार लगाई
अपने अधिकारों की रक्षा के लिए पीड़िता ने वारधा पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। मामले की सुनवाई के बाद, निचली अदालत ने आरोपी को 10 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई, जिसे हाई कोर्ट ने भी सही ठहराया।
अदालत का कड़ा रुख
न्यायमूर्ति गोविंदा सनप ने फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ शारीरिक संबंध, चाहे वैवाहिक हों या अन्य, बलात्कार माने जाएंगे।
उन्होंने यह भी कहा कि नाबालिगों के साथ यौन शोषण किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं है।
अदालत ने दिए ये तर्क:
- IPC के प्रावधानों का पालन: भारतीय दंड संहिता में वैवाहिक बलात्कार के जो अपवाद हैं, वे नाबालिगों पर लागू नहीं होते।
- नाबालिगों के अधिकारों की सुरक्षा: यह फैसला नाबालिग बालिकाओं के अधिकारों और उनके भविष्य को सुरक्षित करने के लिए दिया गया।
- कानूनी उम्र का महत्व: शादी की स्थिति या सहमति का कोई भी दावा, कानून द्वारा निर्धारित आयुसीमा से बड़ा नहीं है।